है तुर्फ़ा तमाशा सर-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत सर बेचते फिरते हैं ख़रीदार-ए-मोहब्बत अल्लाह करे तू भी हो बीमार-ए-मोहब्बत सदक़े में छुटें तेरे गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत इस वास्ते देते हैं वो हर रोज़ नया दाग़ इक दर्द के ख़ूगर न हों बीमार-ए-मोहब्बत कुछ तज़्किरा-ए-इश्क़ रहे हज़रत-ए-नासेह कानों को मज़ा देती है गुफ़्तार-ए-मोहब्बत वाइ'ज़ की ज़बाँ पर तो वो कलिमा है कि गोया बख़्शे ही न जाएँगे गुनहगार-ए-मोहब्बत देखा है ज़माने को इन आँखों ने तो ऐ 'दाग़' इस रंग पर इस ढंग पर इंकार-ए-मोहब्बत