है ये शहर-ए-इश्क़ याँ आब-ओ-हवा कुछ और है सुर्ख़ रंगत है ज़मीं की और फ़ज़ा कुछ और है याँ जुनूँ है कारवान-ए-शौक़ को बाँग-ए-रहील ऐ मुसाफ़िर ये पयाम-ए-नक़्श-ए-पा कुछ और है है जुदा इस शहर-ए-दिल में लज़्ज़त-ए-रंज-ओ-अलम इस जगह ख़ून-ए-जिगर का ज़ाइक़ा कुछ और है आरिफ़-ए-कामिल हैं इन सहराओं के सहरा-नवर्द याँ तो हर मजनूँ का अंदाज़-ओ-अदा कुछ और हे ज़िक्र की तमसील हर तनसील की ता'बीर है लुत्फ़-ए-जन्नत और है आब-ए-बक़ा कुछ और है रेगज़ार-ए-हिज्र में एहसास के ज़मज़म निहाँ इस जगह तो तिश्नगी का सिलसिला कुछ और है तू जो नौ-वारिद है सुन याँ ऐश-ए-हस्ती है जुदा हुस्न की सरकार में लफ़्ज़-ए-फ़ना कुछ और है दोश पर आग़ोश में पहलू में हैदर कब न थे दस्त-ए-मुर्सल पर बुलंदी का मज़ा कुछ और है अहल-ए-रद्द-ओ-कद ने सौ तफ़्सीर की इक लफ़्ज़ की पर न समझे कि नबी का मुद्दआ' कुछ और है सुन किसी मज्ज़ूब से एक बार रूदाद-ए-ग़दीर ख़ुम के मिम्बर पर अली का मर्तबा कुछ और है सुर्ख़-रू हो जाए तुझ से दा'वा-ए-उल्फ़त शहाब आशिक़ों के ज़िंदा रहने की अदा कुछ और है