निज़ाम-ए-जहाँ भी अजब है निराला अँधेरों से डरने लगा है उजाला वो फ़ुटपाथ पर अपना फ़न बेचता था सितमगर जहाँ ने इसे रौंद डाला अना से कहाँ किस को मुक्ती मिली है है मज़बूत कितना ये मकड़ी का जाला यही वो ग़रीबी की गलियाँ हैं यारो जहाँ रोज़ बिकता है इज़्ज़त का प्याला ये फ़िरक़ा-परस्ती का मनहूस बंदर 'असर' तोड़ डालेगा मिल्लत की माला