किताब-ए-ज़ीस्त के हर बाब का उनवाँ नया देखे हर इक बुझते दिए को शौक़ से पागल हवा देखे अभी इक कश्मकश में है मोहब्बत दिल को क्या देखे ख़ुशी देखे ख़ुद अपनी या बुज़ुर्गों की अना देखे चलो अच्छा किया दिल अपना हल्का कर लिया तुम ने हमें भी एक मुद्दत हो चली थी आइना देखे लब-ए-साहिल हमें मौजों ने जब पटख़ा तो रस्ते में बहुत से डूबते मौजों से लड़ते नाख़ुदा देखे तिलस्माती फ़ज़ा थी जब सहर-दम रेग-ए-साहिल पर बगूले की तरह रक़्साँ किसी के नक़्श-ए-पा देखे ख़ुद अपने आप से भी बात करना छोड़ रक्खा है जिसे जीना हो तन्हा वो हमारा हौसला देखे 'सदफ़' इक उम्र के बाद आज हम दिल खोल कर रोए ज़माना हो चला था दिल को ये निखरी फ़ज़ा देखे