हैरत-ए-पैहम हुए ख़्वाब से मेहमाँ तिरे रात चराग़ों में क्यूँ बुझ गए इम्काँ तिरे एक क़दम लग़्ज़िशें राह में आ कर मिलीं रूठ गए तुझ से फिर दश्त-ओ-बयाबाँ तिरे इश्क़ के अंधे ख़ुदा हुस्न का रस्ता दिखा दर पे तिरे आ गए बे-सर-ओ-सामाँ तिरे नश्शा था कैसा अजब ख़्वाब कहानी में जब आँख थी रौशन मिरी नक़्श थे उर्यां तिरे इक अबदी हिज्र की फ़स्ल हरी हो गई भूल गए वक़्त को वअदा-ओ-पैमाँ तिरे शौक़-ए-बहार-ए-ख़याल चूम के चल डाल डाल फूल परेशाँ तिरे बाग़ हैं वीराँ तिरे