होने की इक झलक सी दिखा कर चला गया खोली थी हम ने आँख कि मंज़र चला गया क्या ख़ुद को देखने का अजब शौक़ था कि वो चुप-चाप उठ के सू-ए-समुंदर चला गया किन दाएरों में घूमते हैं अब ख़बर नहीं क्यूँ हाथ से वो चाक सा चक्कर चला गया पहले क़दम पे ख़त्म हुआ क़िस्सा-ए-जुनृूँ पहला क़दम ही दश्त बराबर चला गया हम भी उसी के साथ गए होश से 'सईद' लम्हा जो क़ैद-ए-वक़्त से बाहर चला गया