मिरी रंगीं-कलामी का है वो गुल पैरहन बाइ'स कि होवे बुलबुलों की ख़ुश-सफ़ीरी का चमन बाइ'स कोई होता है संग-ए-सीना ख़ुसरव से रक़ीबों का हुआ नाहक़ हलाक अपने का आपी कोहकन बाइ'स जो होता है किसी से उन्स सब से वहशत आती है मिरी सहरा-नशीनी का है मेरा मन-हरन बाइ'स 'हज़ीं' उन शो'ला-रुख़्सारों से जी को मत लगा हरगिज़ हुई आख़िर को परवाने के जलने की लगन बाइ'स