रख दिया है आदमी ने आइने पर आइना देख कर इंसान को है आज शश्दर आइना प्यास आँसू दर्द-ओ-ग़म हैं सब मिरे भीतर छुपे हँस दिया है असलियत मुझ को दिखा कर आइना देखना जो चाहता मैं देखता मुझ को वही सच नहीं ये है दिखाता सच मुझे हर आइना लाख मैं दुनिया को धोका दूँ लगाता है मगर अस्ल चेहरा सामने लाने में पल भर आइना संग-दिल की फ़ितरतों से आइना अंजान है काश यूँ होता कि होता एक पत्थर आइना देख कर अपना ही चेहरा ख़ुद पे होता है ग़ुरूर यूँ लगे करता हो जैसे जादू-मंतर आइना रेज़ा रेज़ा किस तरह ये ज़िंदगी बिखरी 'रजत' राज़ मेरे जानता है मेरा दिलबर आइना