हज़ारों आरज़ूएँ साथ हैं इस पर अकेली है हमारी रूह बे-बूझी हुई अब तक पहेली है बुढ़ापा हो तो हो उस रब्त में क्यूँ कर ख़लल आए मिरी यास-ओ-तमन्ना बचपने से साथ खेली है अजल भी टल गई देखी गई हालत न आँखों से शब-ए-ग़म में मुसीबत सी मुसीबत हम ने झेली है अदम का था सफ़र जब और कुछ तोशा न हाथ आया बहुत सी आरज़ू चलते चलाते साथ ले ली है ज़रा देखो तो उन उतरे हुए चेहरों को फूलों के मआ'ज़-अल्लाह झोंका है ख़िज़ाँ का या कि सेली है कभी जमने न देती बे-ख़ुदी ख़ातिर पे नक़्श उन का ब-मुश्किल मैं ने ये तस्वीर उसी अय्यार से ली है हमारी और गुलों की एक है नश्व-ओ-नुमा लेकिन वहाँ मुट्ठी में ज़र है और यहाँ ख़ाली हथेली है न पूछो 'शाद' वीरानी को दिल की क्या बताऊँ मैं तमन्ना जा चुकी हसरत ग़रीब इस में अकेली है