हो के ख़ुश नाज़ हम ऐसों के उठाने वाला कोई बाक़ी न रहा अगले ज़माने वाला ख़्वाब तक में भी नज़र आता नहीं ऐ चश्म मेरे रो देने पे अश्कों का बहाने वाला आज कुछ शाम से चुप है दिल-ए-महज़ूँ क्या इल्म क्यूँ ख़फ़ा है मिरा रातों का जगाने वाला बे-ख़ुदी क्यूँ न हो तारी कि गया सीने से अश्क-ए-ख़ूँ आठ-पहर मुझ को रुलाने वाला कब समझता है कि जीना भी है आख़िर कोई शय अपनी हस्ती तिरी उल्फ़त में मिटाने वाला मोहतसिब ख़ुश है बहुत तोड़ के ख़ुम-हा-ए-शराब ग़म नहीं सर पे सलामत है पिलाने वाला हो गए देखने वाले भी जहाँ से नायाब अब दिखाए किसे हैराँ है दिखाने वाला तेरे बीमार-ए-मोहब्बत की ये हालत पहुँची कि हटाया गया तकिया भी सिरहाने वाला सामना उस बुत-ए-काफ़िर का है देखें क्या हो ख़ुद है शश्दर मिरा ईमान बचाने वाला 'शाद' इक भीड़ लगी रहती थी जिस घर में वहाँ आने वाला है न अब कोई न जाने वाला