हक़ीक़त जानता कोई नहीं है भले सब हैं बुरा कोई नहीं है सब अपनी अपनी बोली बोलते हैं किसी का हम-नवा कोई नहीं है जिसे पाने की सब को है तमन्ना उसी को ढूँढता कोई नहीं है ख़मोशी पर मिरी सब लब-कुशा थे मगर अब बोलता कोई नहीं है तिरी दानिस्त में आ'माल तेरे जहाँ में देखता कोई नहीं है बहारें गश्त करती हैं चमन में मगर पत्ता हरा कोई नहीं है तिरी उल्फ़त की चाहत है सभी को मगर मुझ पर फ़िदा कोई नहीं है ख़िरद की इंतिहा मैं चाहता हूँ जुनूँ की इंतिहा कोई नहीं है