हक़ीक़तों का पता दे के ख़ुद सराब हुआ वो मुझ को होश में ला कर ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ वो अपने लम्स से पत्थर बना गया मुझ को विसाल उस का मुझे सूरत-ए-अज़ाब हुआ सरों पे सब के पड़ी हादसों की धूप मगर कोई सराब बना और कोई सहाब हुआ अज़ाब सब के मिरे जिस्म-ओ-जाँ पे नक़्श हुए मिरा वजूद मिरे अहद की किताब हुआ सुकूत-ए-शहर-ए-सितम से असीर-ए-यास न हो कि याँ सकूँ से हुआ जो भी इंक़लाब हुआ वही तो एक हमारा मिज़ाज-दाँ था 'रज़ी' जो हम से दूर रहा और न दस्तियाब हुआ