जो हमारे वास्ते सब दीन थे ईमान थे उन के हाथों में फ़क़त ग़ैरों के ही दीवान थे फिर कहा उस ने कि जब वीरान कर देगी तुम्हें ज़िंदगी इस को बता हम तो सदा वीरान थे ये नहीं कि दर्द-ए-दिल दर्द-ए-जिगर का ख़ौफ़ था उस के जाने से हमें कुछ और भी नुक़सान थे जाने क्यों सारे जहाँ का दर्द इस दिल को मिला इस जहाँ में हम से अच्छे और भी इंसान थे ज़िंदगी को ढूँडने आए हैं हम तेरे जहाँ अपनी बस्ती में तो हर जा मौत के इम्कान थे हम ने कब चाहा था के हम इस तरह लाचार हों ये भी हम पे दोस्तों के जा-ब-जा एहसान थे