हालात से हम उलझ पड़ेंगे ख़ामोश कभी नहीं रहेंगे तहज़ीब करेंगे नख़्ल-ए-दिल की फिर उस को ग़म-ए-बहार देंगे आँसू न बहाएँगे मगर हम उस शख़्स को याद तो करेंगे अब सोच लिया है दिल का क़िस्सा तुझ से तो कभी नहीं कहेंगे जब दर्द की मय नहीं मिलेगी हम शीशा-ए-उम्र तोड़ देंगे मरहम का ख़याल छोड़ 'आमिर' ये ज़ख़्म अभी नहीं भरेंगे