हाल-ए-दिल लाख तिरा उन को जता देते हैं वो मगर बात को बातों में उड़ा देते हैं लाएक़-ए-नज़्र नहीं और तो कुछ अपने पास एक दिल है सो तुम्हें नाम-ए-ख़ुदा देते हैं लाख नफ़रत करें वो हम से अदावत रक्खें ख़ुश रहें शाद रहें उन को दुआ देते हैं बहर-ए-तस्कीं कभी अहबाब ने इतना न कहा क्यों परेशाँ हो 'जरीह' उन को बुला देते हैं