हम चेहरा-ए-ज़ुन्नार को पूजा नहीं करते या'नी दिल-ए-ख़ुद्दार को रुस्वा नहीं करते हम दामन-ए-पिंदार को मैला नहीं करते अज्दाद के किरदार को बेचा नहीं करते ऐ अहल-ए-वतन आप से इतनी है गुज़ारिश सींचे हुए गुलज़ार को रौंदा नहीं करते कश्ती को किनारे पे ले आना ही बहुत है गिर्दाब-ए-ज़रर-बार को रोका नहीं करते तख़रीब ही ता'मीर की बुनियाद है यारो उजड़े हुए घर-बार को रोया नहीं करते गुलज़ार के फूलों की हिफ़ाज़त है इबादत 'राही' तो कभी ख़ार को सींचा नहीं करते