इस कम-सिनी में देखिए आलम शबाब का जैसे चमन में फूल खिला हो गुलाब का मुझ पर शराब-नोशी का इल्ज़ाम मत लगा देखा है तेरी आँखों में दरिया शराब का बैठा हूँ उस के सामने फिर भी है तिश्नगी हाइल है दरमियान में पर्दा हिजाब का तुम मेरे साथ साथ हो आता नहीं यक़ीं महसूस मुझ को होता है मंज़र ये ख़्वाब का दो आशिक़ों को डूबे ज़माना गुज़र गया उतरा हुआ है आज भी चेहरा चनाब का इस के सिवा किसी को भी पहचानता नहीं ये हाल हो गया दिल-ए-ख़ाना-ख़राब का तुम ग़म अता करो कि ख़ुशी सब क़ुबूल है मुद्दत से मुंतज़िर हूँ तुम्हारे जवाब का