क्यों दिलों का सुकूँ लुटा आख़िर लोग क्या कर गए ख़ता आख़िर हो गया वो भी बेवफ़ा आख़िर जिस का डर था वही हुआ आख़िर जाने वाली सदी से पूछे कौन ख़ून क्यों इस क़दर बहा आख़िर क्यों निगाहें बदल गईं तेरी क्या ख़ता मैं ने की बता आख़िर वक़्त-ए-आख़िर ये दीन की बातें याद आया उन्हें ख़ुदा आख़िर दिल-ए-ख़ाना-ख़राब के हाथों ज़िंदगी बन गई सज़ा आख़िर दर्द-ए-दिल का बहुत इलाज किया ये मरज़ निकला ला-दवा आख़िर मैं ने जिस पर भी ए'तिबार किया हैफ़ वो दे गया दग़ा आख़िर हम-सफ़र उस का साथ छोड़ गए 'नाज़' तन्हा ही रह गया आख़िर