मुझ सीं ग़म दस्त-ओ-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ चाक सीने का नुमायाँ न हुआ था सो हुआ अब तलक मुझ कूँ किसी शख़्स के चेहरा का ख़याल सूरत-ए-आइना-ए-जाँ न हुआ था सो हुआ सफ़-ए-उश्शाक़ में कोई सानी-ए-मजनूँ मुझ सा वहशी-ए-कोह-ओ-बयाबाँ न हुआ था सो हुआ अश्क ओले हो बरसते हैं मिरे दामन में ये वरक़ नुक़रा-ए-अफ़्शाँ न हुआ था सो हुआ ख़ंजर-ए-इश्क़ ने एहसान किया सर पे मिरे जान कंदन कभी आसाँ न हुआ था सो हुआ क़िबला-रू रहम किया मुझ पे ख़त-आग़ाज़ी में काफ़िर-ए-हिन्द मुसलमाँ न हुआ था सो हुआ आह-ए-सोज़ाँ सीं मिरे दामन-ए-सहरा में 'सिराज' क़ब्र-ए-मजनूँ पे चराग़ाँ न हुआ था सो हुआ