हम करें किस पे भरोसा कि यहाँ सब झूटे ये मोहब्बत ये मोहब्बत के निशाँ सब झूटे कोई ऐसा नहीं मुश्किल में जो कुछ काम आए किस का हम ज़िक्र करें जान-ए-जहाँ सब झूटे हम ने देखा है वो मंज़र कि लरज़ जाता है दिल कैसे कह दें कि नहीं अहल-ए-जहाँ सब झूटे राहतें ख़्वाब सही तुम तो हक़ीक़त ठहरे बात इक सच है यही बाक़ी निशाँ सब झूटे दिल भी अपना नहीं नाहक़ है शिकायत उन की जिस क़दर भी हों मोहब्बत में गुमाँ सब झूटे ऐन मुमकिन है कि तूफ़ाँ में बदल दें तेवर जो सफ़ीने हैं समुंदर में रवाँ सब झूटे उन की तस्वीर भी मिट जाएगी इक दिन 'अंजुम' ये नज़ारे कि जो हैं रंग-फ़िशाँ सब झूटे