हम से पूछे कोई चाहत का सज़ा हो जाना नर्म गुफ़्तार का पत्थर का ख़ुदा हो जाना जब मैं उन्वान-ए-मोहब्बत पे कोई नज़्म लिखूँ तुम महकते हुए लफ़्ज़ों की क़बा हो जाना नाम ख़्वाबों की सलीबों पे न लिखिए मेरा मेरी फ़ितरत है हक़ीक़त पे फ़िदा हो जाना मैं ने पूजा था तुम्हें दर्द-ए-मोहब्बत के सबब तुम से ये किस ने कहा था कि ख़ुदा हो जाना दश्त-ए-तूफ़ाँ में अगर मेरा सफ़ीना देखो तुम मिरी माँ की तरह महव-ए-दुआ हो जाना अब तकल्लुफ़ से कोई काम न लेना 'आमिर' जब वो तुम से हों ख़फ़ा तुम भी ख़फ़ा हो जाना