हमारा प्यार दिखावे का प्यार थोड़ी है ख़ुलूस-ए-दिल है कोई इश्तिहार थोड़ी है ये बादशाहों सा लहजा बदल मिरे भाई कि अब यहाँ पे तिरा इक़्तिदार थोड़ी है ग़रीब-ए-शहर तवंगर से कह रहा था कि तू अमीर-ए-शहर है परवरदिगार थोड़ी है मिरे फटे हुए दामन पे हँसने वाले सुन ये तार तार सही दाग़-दार थोड़ी है यज़ीदियत में नदामत है फ़त्ह पा कर भी हुसैनियत की शहादत में बार थोड़ी है हज़ार जान लुटाऊँ वतन पे मैं 'साजिद' वफ़ा-शिआ'रों में मेरा शुमार थोड़ी है