मुझ को ढूँडो कि खो गया हूँ मैं जब से मक़्बूल हो गया हूँ मैं जल गया घर फ़साद में मेरा और बारूद हो गया हूँ मैं महव-ए-हम्द-ओ-सना परिंदे हैं और अज़ाँ सुन के सो गया हूँ मैं घात से दुश्मनों की बच आया क़त्ल अपनों में हो गया हूँ मैं भाइयों पर भी ए'तिमाद नहीं इतना मोहतात हो गया हूँ मैं