हमारे दरमियाँ अहद-ए-शब-ए-महताब ज़िंदा है हवा चुपके से कहती है अभी इक ख़्वाब ज़िंदा है ये किस की नर्म ख़ुशबू है मिरी शब की हवेली में ये कैसा रक़्स-ए-मस्ती ऐ दिल-ए-बेताब ज़िंदा है कहाँ वो साँवली शामें कहाँ वो रेशमी बातें मगर इक लम्स-ए-हैराँ का अभी ज़रनाब ज़िंदा है अभी तक पानियों में सुरमई साए उतरते हैं अभी तक धड़कनों में दर्द की मिज़राब ज़िंदा है सिरात-ए-इश्क़ है और हिज्र की तन्हा मसाफ़त है वही है तिश्नगी फिर भी फ़रेब-ए-आब ज़िंदा है