हमारे हाथ से बस इक नज़ारा बनता है बनाते कुछ भी हैं चेहरा तुम्हारा बनता है उसे पुकारते रहने से कुछ नहीं होता ख़राब होता हुआ दिन हमारा बनता है ये देखने के लिए उस ने फिर से तोड़ दिया कि कैसे टूटा हुआ दिल दोबारा बनता है ख़ुशी से गर तिरी आँखें कभी चमक उट्ठीं फ़लक पे दूर कहीं इक सितारा बनता है मुदावा ग़म का तो होता नहीं किसी भी तरह मगर नदी का कहीं तो किनारा बनता है जहाँ से 'सैफ़' हमें कुछ नज़र नहीं आता वहीं से रास्ता अक्सर हमारा बनता है