कोशिश तो बारहा थी मिरी पर न बन सका ख़्वाबों का इक मकाँ तो बना घर न बन सका बनता रहा बिगड़ता रहा उम्र-भर ये दिल लेकिन तमाम उम्र ये पत्थर न बन सका मसनद के आगे इतना झुकाया है अपना सर बच्चों का मेरे धड़ तो बना सर न बन सका मैं मुब्तला तो रह गया तेरे हिसार में अफ़सोस ये कि मैं तिरा महवर न बन सका उस की गली बला की कुशादा गली थी 'सैफ़' मेरे लिए वहाँ भी मगर दर न बन सका