हमारी जीत हुई है कि दोनों हारे हैं बिछड़ के हम ने कई रात दिन गुज़ारे हैं हनूज़ सीने की छोटी सी क़ब्र ख़ाली है अगरचे इस में जनाज़े कई उतारे हैं वो कोएले से मिरा नाम लिख चुका तो उसे सुना है देखने वालों ने फूल मारे हैं ये किस बला की ज़बाँ आसमाँ को चाट गई कि चाँद है न कहीं कहकशाँ न तारे हैं मुझे भी ख़ुद से अदावत हुई तो ज़ाहिर है कि अपने दोस्त मुझे ज़िंदगी से प्यारे हैं नहीं कि अर्सा-ए-गिर्दाब ही ग़नीमत था मगर यक़ीं तो दिलाओ यही किनारे हैं ग़लत कि कोई शरीक-ए-सफ़र नहीं 'असलम' सुलगते अक्स हैं जलते हुए इशारे हैं