हमारी कैफ़ सज़ा-वार-ए-एहतिसाब नहीं ख़याल-ए-चश्म है कुछ साग़र-ए-शराब नहीं वो बे-नक़ाब हुआ है तो ये तमाशा है दो-चार होने की आँखों में अपनी ताब नहीं ये मुझ को उस के तग़ाफ़ुल से है यक़ीन कि हाए जवाब-नामे सो ऐ नामे का जवाब नहीं समा रहा है यहाँ तक परी-रुख़ों का जमाल हमारी आँखों में ख़ाली मक़ाम-ए-ख़्वाब नहीं बुतों के पर्दे में हम देखते हैं नूर-ए-ख़ुदा ख़ुदा के देखने की ऐ कलीम ताब नहीं वुफ़ूर-ए-अश्क से क्यों है गले तलक पानी हमारा कासा-ए-सर कासा-ए-हबाब नहीं मैं बज़्म-ए-शाहिद-ओ-साक़ी में क्यों न वज्द करूँ बरा-ए-ज़ोहद-ओ-वरा आलम-ए-शबाब नहीं किया है दाग़ ने क्यों उस को मंज़िल-ए-ख़ुर्शीद हमारा दिल है ये कुछ बुर्ज-ए-आफ़्ताब नहीं हुआ है माने-ए-दीदार-ए-यार पर्दा-ए-चश्म खुली जो आँख तो कुछ दरमियाँ हिजाब नहीं ये ज़ब्त-ए-गिर्या में आलम है बे-क़रारी का कि बर्क़ कौंदती है बारिश-ए-सहाब नहीं बशर के जिस्म में है जान माया-ए-ग़फ़लत सो ऐ दीदा-ए-तस्वीर किस को ख़्वाब नहीं दिला है मौसम-ए-पीरी महल जाम-ए-शराब बग़ैर सुब्ह कोई वक़्त-ए-आफ़्ताब नहीं मैं ग़श से उस के छिड़कते ही होशियार हुआ किसी सनम का पसीना है ये गुलाब नहीं बहुत फ़रेब से हम वहशियों को वहशत है हमारे दश्त में 'नासिख़' कहीं सराब नहीं