हमारी खिड़की में आ गया है ये चाँद कब से यहीं पड़ा है जो अपनी कश्ती डूबो रहा है कई दिनों नाख़ुदा रहा है जिसे नया सब बता रहे हैं तमाशा पहले किया गया है मकाँ ढहा है अभी ये जा कर कई बरस घर बसा रहा है हमें यक़ीं था बहुत किसी पर हमें उसी पर शुबह हुआ है हरा-भरा था कभी शजर ये शजर घरोंदों पे आ गिरा है अभी हवाएँ भी सर-फिरी हैं अभी दिसम्बर नया नया है हमें भुलाने की कश्मकश में वो अपने दिल से ख़फ़ा रहा है बदन जले है क्यों बारिशों में ये बूँद में क्या मिला हुआ है हमें सुख़न की तलब रही है हमें सुख़न का नशा रहा है वो जिस ने हम को ज़मीं नहीं दी हमें फ़लक से गिरा रहा है