ढूँढता फिरता है का'बे में सनम है कि नहीं ऐ दिल-ए-नादाँ तुझे पास-ए-हरम है कि नहीं फिर वही बर्क़-ए-तबस्सुम ख़िर्मन-ए-दिल पर गिरी आप ही कहिए कि ये ज़ुल्म-ओ-सितम है कि नहीं ऐ मसीहा-ए-ज़माना ये बता देता मुझे जो जिगर में दर्द है मेरे वो कम है कि नहीं जो ख़लिश बेचैन कर देती है मुझ को बार बार आप के सीने में भी वो सोज़-ए-ग़म है कि नहीं मेरे साक़ी मैं नहीं आता घटा ले आई है देखूँ तू भी माइल-ए-लुत्फ़-ओ-करम है कि नहीं अब के रहबर जो बनाएँ तो परख कर देख लें अहल-ए-दिल अहल-ए-नज़र अहल-ए-क़लम है कि नहीं पड़ के हाथों में ज़माने के ज़रा 'हमदम' बता ज़िंदगी वक़्फ़-ए-अलम मश्क़-ए-सितम है कि नहीं