हमें क्या ख़बर है कहाँ छोड़ आए बहुत पीछे हम कारवाँ छोड़ आए हमें तू ने बख़्शे थे ग़म के अंधेरे अँधेरों में हम कहकशाँ छोड़ आए अज़ल से तबीअत थी आवारा अपनी ज़मीं के लिए आसमाँ छोड़ आए ज़माना हमें भूल पाएगा कैसे हर इक दिल में दर्द-ए-निहाँ छोड़ आए बुलाया है तुम ने तो इज़्ज़त भी रखना पस-ए-पुश्त सारा जहाँ छोड़ आए 'मजीद' अपने दामन में काँटे सजा कर तुम्हारे लिए गुल्सिताँ छोड़ आए