हम-नशीं जिस को समझता था सितमगर निकला आस्तीं में वो छुपाए हुए ख़ंजर निकला ये भी अच्छा हुआ बरसों का भरम टूट गया हीरा समझा था जिसे हाए वो पत्थर निकला तू तो कहता था तिरे प्यार में रक्खा क्या है दिल जो चीरा तो मोहब्बत का समुंदर निकला मैं तो समझा था नहीं है कोई अरमाँ बाक़ी दिल में झाँका तो तमन्नाओं का लश्कर निकला क्यों किसी और पे इल्ज़ाम लगाऊँ बेजा दिल मिरा तोड़ने वाला मिरा दिलबर निकला यक-ब-यक होने लगे ज़ख़्म हरे सीने के दर्द आँखों से मिरे दिल का सिमट कर निकला