जब से उस शोख़ के पहलू में जगह पाई है दिल के वीरान गुलिस्ताँ में बहार आई है अब तो चिलमन रुख़-ए-रौशन से हटा दे जानाँ दिल तिरी दीद का बरसों से तमन्नाई है अजब अंदाज़ से लूटा है मता-ए-दिल को कितनी पुर-कैफ़ मिरी जाँ तिरी अंगड़ाई है डूब जाओगे अगर उस से मिलाईं नज़रें उस की आँखों में समुंदर की सी गहराई है देख पछताएगा दिल तोड़ के जाने वाले कौन है मेरे सिवा जो तिरा शैदाई है बुग़्ज़-ओ-नफ़रत के सिवा और यहाँ कुछ भी नहीं ज़िंदगी मेरी मुझे 'दर्द' कहाँ लाई है