हमराज़ है ऐ मेरे सनम रात का साया पोशीदा दिल में रखता है ग़म रात का साया फ़ुर्क़त में चिता ग़म की सुलगती है तुम्हारे और कितना सहे ज़ुल्म-ओ-सितम रात का साया उम्मीद की फूटी है किरन दिल में हमारे देता है सवेरे को जनम रात का साया वा'दे से मुकर जाना हसीनों की अदा है सुनता है सभी क़ौल-ओ-क़सम रात का साया ज़ुल्मत को हिक़ारत की निगाहों से न देखो किरनों की अदाओं में है ज़म रात का साया तारे भी नज़र आते नहीं दामन-ए-शब में सन्नाटा है और इस पे सितम रात का साया दिल को है 'वक़ार' एक तबस्सुम की तमन्ना बेताब है दिल उस पे करम रात का साया