हम-सफ़र कोई नहीं तो शोर-ओ-शर किस के लिए ऐ मुसाफ़िर ये सदा-ए-रहगुज़र किस के लिए ख़ुद से अब तक बाज़ रक्खा मैं ने अपने आप को मर तो जाना था मुझे मरता मगर किस के लिए कौन आया है मिरे पीछे ये कैसा वहम है मैं ठहर जाता हूँ हर इक मोड़ पर किस के लिए ये जो रंग-ए-ना-मुरादी खिल रहा है चार-सू ऐ ख़िज़ाँ इस का सबब क्या है ये ज़र किस के लिए चैन बाहर भी नहीं है फिर न जाने क्यूँ 'ज़फ़र' दुख सा होता है कि लौट आया हूँ घर किस के लिए