सर को नौशा के मिरे शाह ने बाँधा सेहरा सूरा-ए-नूर का दिखलाता है जल्वा सेहरा रीश याक़ूब ने रक्खी है रुख़-ए-यूसुफ़ पर चश्म-ए-बद-दूर कि है ज़ुल्फ़-ए-ज़ुलेख़ा सेहरा बाग़-ए-उल्फ़त से हसीनों ने जो कलियाँ बीनी उस परी के लिए परियों ने बनाया सेहरा जदवलें सोने की याक़ूत रक़म ने खींची या है मुसहफ़ पे सर-ए-लौह मुतल्ला सेहरा जल्वा-ए-तूर का मूसी को गुमाँ हो जाता मेरे नौशा जो ज़रा देखते सर का सहरा शो'ला-ए-हुस्न जो उन का न छुपा सेहरे में इज्ज़ से आप को क़दमों पे गिराया सेहरा पोते पड़पोतों के तुम बाँधियो सर को सेहरे जैसा बाबा ने तुम्हारे तुम्हें बाँधा सेहरा हुब का ता'वीज़ बने फूल हर इक सेहरे का वस्ल-ए-यार उस को हो जिस ने तिरा देखा सेहरा ऊफ़्तादा भी है ये और बड़ा शोख़ भी है गुल-ए-रुख़्सार का ले लेता है बोसा सेहरा सेहरा जो बाँधते हैं हिन्द में नौशाहों को चश्म-ए-बद के लिए शायद है ये निकला सेहरा पंजा-ए-मेहर से ज़ोहरा ने बलाएँ ले लीं जब 'नसीम'-ए-चमन-ए-शौक़ ने लिक्खा सेहरा