पुरानी याद की ता'मीर ढाना भूल जाता हूँ मैं इक घर से नए घर को बसाना भूल जाता हूँ निकल जाता हूँ दरिया पार पानी पाट के लेकिन किनारे से किनारे को मिलाना भूल जाता हूँ मैं यारों की जफ़ाओं को बयाँ करते हुए अक्सर मैं दुश्मन की सदाक़त को बताना भूल जाता है मिरे तन पर क़बा ज़ख़्मों की हर मौसम बदलती है लबादा ओढ़ता हूँ और पुराना भूल जाता हूँ