हंगामा बपा हश्र का ऐ दोस्तो जब हो साक़ी-ए-गुल-अंदाम हो और बिन्त-ए-इनब हो ज़ंजीर-ए-दर-ए-यार पे रहती हैं निगाहें फज्र-ओ-ज़ुहर-ओ-अस्र या तारीकी-ए-शब हो दिल दो जिगर-ओ-जान भी ईमान भी ये क्या मुहताज नहीं पर बड़े बिसयार-तलब हो हासिद अरे बुज़दिल अरे शातिर अरे ज़ालिम हासिल तुझे तस्कीन-ए-दिली हो भी तो कब हो 'आजिज़' करो आराम कि सत्तर के हुए तुम इस उम्र में मरने की हवस वाह अजब हो