इश्क़ में अपने ज़बूँ-हाल जो मेरा देखा हँस के फ़रमाया मोहब्बत का नतीजा देखा किसी दुश्मन के भी दुश्मन को दिखाए न ख़ुदा जो मिरे दिल ने शब-ए-हिज्र में सदमा देखा अपनी आँखों में रही माह की तौक़ीर न कुछ हम ने जिस दिन से तुम्हारा रुख़-ए-ज़ेबा देखा हम ने बाज़ार-ए-मोहब्बत में दिल-ए-वारफ़्ता हर तरफ़ तेरा ही होते हुए चर्चा देखा जब नज़र पड़ती है 'साबिर' तो ग़श आ जाता है फिर तो यकसाँ है नहीं देखा उसे या देखा