हर चंद कि लाए थे जिगर चीर के मोती अर्ज़ां ही रहे नाला-ए-शब-गीर के मोती इक माँ ने बिलकते हुए बच्चों के लिए शब बेचे किसी बाज़ार में तौक़ीर के मोती हर रंग जमाते हैं यक़ीं-ताब बदन का इन ख़्वाब से होंटों पे असातीर के मोती दहलीज़-ए-मोहब्बत से समेटे हैं हमेशा तारे किसी शीरीं के किसी हीर के मोती ख़ामोशी कहेगी ख़लिश-ए-जाँ का फ़साना पलकों से चुने जाएँगे तासीर के मोती ज़ुल्मत-कदा-ए-फ़िक्र में ताबाँ हैं अज़ल से ग़ालिब के कहीं 'मीर'-तक़ी-'मीर' के मोती काफ़ी से ज़ियादा है ये तावान जुनूँ का हैं कासा-ए-ज़ानू में जो ज़ंजीर के मोती हो जाएँगे मुझ ऐसे सियहकार की ख़ातिर बख़्शिश का वसीला ग़म-ए-शब्बीर के मोती