हर चंद कि रोते में असर मैं नहीं रखता कुछ इस के सिवा और हुनर मैं नहीं रखता उस शोख़ के आने की ख़बर मुझ से न पूछो थी बे-ख़बरी मुझ को ख़बर मैं नहीं रखता आगे मिरे रीसे है जो इस कूचे में आ कर ऐ अब्र मगर दीदा-ए-तर मैं नहीं रखता है दूरी-ए-गुलशन से क़लक़ जिन को निहायत अफ़्सोस कि इस फ़स्ल में पर मैं नहीं रखता