हर चंद ज़ुल्मतों के हवाले बहुत मिले रस्ते में मुझ को फिर भी उजाले बहुत मिले इंसानियत का कौन है क़ातिल पता तो है लेकिन सभी ज़बानों पे ताले बहुत मिले जज़्बात-ए-दिल ने 'अज़्म को मग़्लूब कर दिया मंज़िल मिली तो पाँव में छाले बहुत मिले लगता है इन सरों पे है इक बोझ क़र्ज़ का हाथों में थरथराते निवाले बहुत मिले दिल को ग़म-ए-हुसैन का पाबंद कर दिया इस दिल में मुझ को कर्बला वाले बहुत मिले कोई भी दर्द बाँटने वाला नहीं मिला हाँ फेसबुक पे चाहने वाले बहुत मिले 'आतिश' सुनी है अहल-ए-सियासत की गुफ़्तुगू सच्चाइयों में मिर्च मसाले बहुत मिले