न दोहराओ मुझे उस की कमी अच्छी नहीं लगती अधूरी दास्तान-ए-ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती चलो मिल कर कटे रस्ते पे हम इक पुल बना डालें हमें भी गुफ़्तुगू अब दूर की अच्छी नहीं लगती ये कैसा दौर आया है कि अपने घर के बच्चों को बुज़ुर्गों की अब अच्छी बात भी अच्छी नहीं लगती 'उरूज-ए-ज़िंदगी पाया है जिस ने पल के ग़ुर्बत में उसी इंसान को अब मुफ़लिसी अच्छी नहीं लगती मुझे जब याद आ जाता है मंज़र घर के जलने का चराग़ों की भी 'आतिश' रौशनी अच्छी नहीं लगती