हर दर्द के हर ग़म के तलबगार हमीं हैं इस जिंस-ए-गिरामी के ख़रीदार हमीं हैं दुनिया में जफ़ाओं के सज़ा-वार हमीं हैं 'मुमताज़' ब-हर-हाल गुनाहगार हमीं हैं जो इश्क़ में गुज़री है सो गुज़री है हमीं पर आवारा-ओ-रूस्वा सर-ए-बाज़ार हमीं हैं अब कौन करे रोज़ नई उन से शिकायत अच्छा चलो तस्लीम जफ़ा-कार हमीं हैं 'मुमताज़' जो नाज़ाँ हैं बहुत तिश्ना-लबी पर कह दे कोई साक़ी से वो मय-ख़्वार हमीं हैं