हर एक रस्ता-ए-पायाब से निकलना है सराब-ए-उम्र के हर बाब से निकलना है सर-ए-अनासिर-ए-कमयाब से निकलना है शुमार-ए-नादिर-ओ-नायाब से निकलना है तवील-तर से किसी ख़्वाब में उतरने को हर एक शख़्स को इस ख़्वाब से निकलना है लहू लहू सर-ए-मिज़्गाँ तुलअ होना है किनार-ए-ख़ित्ता-ए-पुर-आब से निकलना है उसे भी पर्दा-ए-तहज़ीब को गिराना है मुझे भी पैकर-ए-नायाब से निकलना है सुकून लम्हा-ए-भारी ने ही उगलना है तो चैन अर्सा-ए-बे-ताब से निकलना है नहीं है रहना उसे भी बहार में 'ताहिर' मुझे भी मौसम-ए-शादाब से निकलना है