ख़ुश-काम करो ख़ातिर-ए-नाकाम हमें दो ख़ाली हो कि लबरेज़ कोई जाम हमें दो मायूस नहीं हम अभी इस्लाह-ए-बशर से हर कू-ए-ग़लत मंज़िल-ए-बदनाम हमें दो जौलाँ-गह-ए-ख़सान-ए-मोहब्बत से गुज़ारो कहते नहीं हम शाहरह-ए-आम हमें दो आरास्ता गेसू से अता हो फ़न-ए-सादी नज़रों से अदब-पारा-ए-ख़य्याम हमें दो मस्लक है मोहब्बत का वल-इतमाम मिनल्लाह क्यों कश्मकश-ए-ख़ातिर-ए-नाकाम हमें दो गुंजान हुआ गेसुओं वालों से मोहल्ला हम-तर्ज़-ए-हसीनान-ए-अवध शाम हमें दो 'मानी' यही सुक़रात का सज्जादा-नशीं है देना है उसे ज़हर भरा जाम हमें दो