हर इक साँस से सीने में घाव लगता है फ़ज़ा में आज भी कल सा तनाव लगता है ये ठीक है ये समुंदर है पुर-सुकूँ सा मगर नहीं उधर का जिधर का बहाव लगता है मुवाफ़क़त ही बिना अहलियत की हो जिस में मुझे तो ढोंग वो सारा चुनाव लगता है मैं जिस सहर के तक़ाज़े से जाग उठा उस का कुछ अब भी शब के सफ़र में पड़ाव लगता है ये बारिशों की नहीं रुत अगर तो क्यों 'आसिम' हवा में ऐसा नमी का दबाव लगता है