हर फ़ज़ा और हर इक सम्त नज़र रखता हूँ

हर फ़ज़ा और हर इक सम्त नज़र रखता हूँ
मैं हूँ शाइ'र मैं दो-आलम की ख़बर रखता हूँ

ये न समझो कि है मुझ को किसी मंज़िल की तलाश
ख़ुद मैं मंज़िल हूँ मगर ज़ौक़-ए-सफ़र रखता हूँ

रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत की है मंज़िल ही जुदा
मैं ज़माने से अलग राहगुज़र रखता हूँ

शे'र में ख़ून-ए-जिगर से मिरे रंगीनी है
शायरी के लिए मैं ख़ून-ए-जिगर रखता हूँ

इक नज़र से मिरी टूटे हुए दिल जुड़ते हैं
मैं मसीहा हूँ मोहब्बत की नज़र रखता हूँ

ख़ुद-बख़ुद दिल से मिरे शेर टपक जाते हैं
कब ग़ज़ल कहने का वर्ना मैं हुनर रखता हूँ

हर-नफ़स जल्वा-ए-सद-रंग का आलम है 'पयाम'
जल्वा-ए-हुस्न ब-उनवान-ए-दिगर रखता हूँ


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