हज़ार हम पर सितम करेंगे हज़ार जौर-ओ-जफ़ा करेंगे न हम ने तर्क-ए-वफ़ा किया है कभी न तर्क-ए-वफ़ा करेंगे नहीं हैं आसाँ वफ़ा की राहें क़दम क़दम है नई क़यामत ख़िरद कहाँ अपने काम आई जुनूँ को अब रहनुमा करेंगे न कोई दुश्मन बुझा सके हैं न कोई आँधी बुझा सकेगी चराग़ उल्फ़त के इस जहाँ में जला किए हैं जला करेंगे यही परस्तिश है अब हमारी यही है अब बंदगी हमारी जहाँ भी हों ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के साए वहीं पे सज्दे क्या करेंगे है दुश्मनों से भी प्यार हम को कि दोस्ती है शिआ'र अपना बिछाएँगे राह में जो काँटे हम उन के हक़ में दुआ करेंगे नहीं ये ऐश-ओ-तरब की महफ़िल मक़ाम-ए-जहद-ओ-अमल है दुनिया उन्हीं को जीने का हक़ मिलेगा जो ज़ीस्त का हक़ अदा करेंगे 'पयाम' नाकाम हैं तो क्या है नहीं है फ़ितरत में ना-उमीदी करम की उम्मीद पर है जीना कभी तो मेह्र-ओ-वफ़ा करेंगे