हर घड़ी ख़ौफ़ के गिर्दाब में रहना ही नहीं अब मुझे हल्क़ा-ए-अहबाब में रहना ही नहीं मैं तिरी बात करा देता हूँ ख़ुद से लेकिन आँख कहती है किसी ख़्वाब में रहना ही नहीं नाम भी लेता नहीं अब वो कहीं जाने का कल जो कहता था कि पंजाब में रहना ही नहीं हम मुलाक़ात के औक़ात बढ़ा दें लेकिन देर तक चाँद को तालाब में रहना ही नहीं वो तो ऐसे ही मुझे आप बुलाती है 'हसन' जब कि मुझ को अदब-आदाब में रहना ही नहीं